नोएडा में बिल्डरों द्वारा खरीदारों को फ्लैट पजेशन में देरी के मामले सामने आते रहते हैं। सरकार इन मामलों को लेकर सख्त भी है, ऐसा न हो इसके लिए कई नियम कायदे बनाए हैं। अब नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रेसल कमिशन (NCDRC) द्वारा फ्लैट पजेशन देने में हुई देरी पर बिल्डर को सबक सिखाने वाला फैसला सुनाया है। NCDRC ने पंचशील बिल्डटैक को होम बायर को मुआवजा देने के निर्देश दिए हैं।

द इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, मामला करीब एक दशक पुराना है। साल 2012 में एक व्यक्ति ने ग्रेटर नोएडा के सेक्टर 16 स्थित पंचशील ग्रीन्स में 70 लाख रुपये का एक फ्लैट बुक किया था। अगर सभी चीजें प्लान के हिसाब से रहती तों उसे 2017 में फ्लैट का पजेशन मिल जाता है। साल 2021 में फ्लैट बायर से बिल्डर ने अधूरे घर का पजेशन लेने के लिए कहा, जिसपर उन्होंने इनकार कर दिया।

अब नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रेसल कमिशन (NCDRC) ने पंचशील बिल्डटेक को निर्देश दिया है कि वो होम बायर को तीन साल (2017 से 2020) के मुआवजा के रूप में जमा राशि पर 6% सालाना ब्याज दे। इसके अलावा NCDRC ने बिल्डर को यह निर्देश भी दिया है कि वो फ्लैट का निर्माण कार्य तुरंत पूरा करे और बिना किसी देरी के फ्लैट हैंडओवर करे।

क्या है बिल्डर का पक्ष?

रिपोर्ट में के अनुसार, बिल्डर ने कहा कि किसान आंदोलन की वजह से मास्टर प्लान को देरी से अधिसूचित किया गया। इस वजह से 2012 से 2014 तक दो वर्ष की देरी हुई। हालांकि उसने होम बायर को साल 2017 में पजेशन ऑफर किया लेकिन ऑक्यूपेशन सर्टिफिकेट जारी नहीं किया गया था, जिस वजह से शिकायतकर्ता ने पजेशन लेने से इनकार कर दिया। चार साल की देरी के बाद ऑक्यूपेशन सर्टिफिकेट जारी हुआ और साल 2021 में बायर को पजेशन ऑफर किया गया।

इस मामले के शिकायतकर्ताओं में से एक रीना राव को जब दूसरी बार फ्लैट पजेशन ऑफर किया गया तो उन्होंने आरोप लगाया कि घर रहने लायक नहीं था। उन्होंने शिकायत की कि एंट्री गेट मिसिंग था। प्लैट पूरी तरह से रॉ था और उसमें बहुत ज्यादा रिसाव हो रहा था। उनकी शिकायत में यह भी कहा गया कि लकड़ी का काम, बाथरूम फिटिंग्स, किचन वर्क पूरी तरह अधूरे थे और घर की दीवारें एक-दूसरे से अलाइन नहीं थीं।

रीना राव ने बिल्डर को लिखा कि आपका पजेशन का ऑफर झूठा है और महज दिखावा है। शिकायतकर्ताओं ने यह भी आरोप गया कि भूमि अधिग्रहण के मामले में किसानों को दिए जाने वाले मुआवजे में कथित तौर पर वृद्धि करने वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के बाद फ्लैट की कीमत 55.7 लाख रुपये से बढ़ाकर 70 लाख रुपये कर दी गई थी। इस प्रोजेक्ट में फ्लैट बुक करने वाले खरीदारों ने यह भी आरोप लगाया कि इस प्रोजेक्ट से पैसा “गबन” किया गया है। बिल्डर द्वारा इस प्रोजेक्ट को पूरा किए बिना अन्य प्रोजेक्ट शुरू कर दिए गए।