Jul 9, 2024
The last Mughal emperor to rule Delhi, Bahadur Shah Zafar, was a man much more than how he was painted by the British. He was a poet and patron of the arts, and wrote many beautiful couplets on love, loss, and even his situation in Delhi. Read some of them here.
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कोई क्यूँ किसी का लुभाए दिल कोई क्या किसी से लगाए दिलवो जो बेचते थे दवा-ए-दिल वो दुकान अपनी बढ़ा गए
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इन हसरतों से कह दो कहीं और जा बसें इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़-दार में
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तुम ने किया न याद कभी भूल कर हमेंहम ने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया
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बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थीजैसी अब है तिरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी
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कितना है बद-नसीब 'ज़फ़र' दफ़्न के लिएदो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में
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न थी हाल की जब हमें अपने ख़बर रहे देखते औरों के ऐब ओ हुनरपड़ी अपनी बुराइयों पर जो नज़र तो निगाह में कोई बुरा न रहा
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हाल-ए-दिल क्यूँ कर करें अपना बयाँ अच्छी तरहरू-ब-रू उन के नहीं चलती ज़बाँ अच्छी तरह
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दौलत-ए-दुनिया नहीं जाने की हरगिज़ तेरे साथबाद तेरे सब यहीं ऐ बे-ख़बर बट जाएगी
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ऐ वाए इंक़लाब ज़माने के जौर सेदिल्ली 'ज़फ़र' के हाथ से पल में निकल गई
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हम ही उन को बाम पे लाए और हमीं महरूम रहेपर्दा हमारे नाम से उट्ठा आँख लड़ाई लोगों ने
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